Gunjan Kamal

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यादों के झरोखे से " दादी की सीख "

दोस्तों ! आज मेरी दादी को गुज़रे पूरे दस साल से ऊपर हो चुके है, जैसा कि अधिकांश बच्चों को अपनी - अपनी दादियो का प्यार और स्नेह मिलता है वैसा मुझे और मेरे बड़े भैया को भी मिला था हालांकि मैं अपने पूरे भाई-बहनों में छोटी हूॅं शायद! इसी वजह से मुझे सबके हिस्से का प्यार और दुलार मिलता ही रहा था और अभी भी मिलता है। मैं दादी की पाॅंच संतानों में सबसे छोटे बेटे की बेटी हूॅं तो दादी का मुझपर स्नेह कुछ अधिक ही था, जब भी मैं माॅं को घर में नहीं दिखती वह समझ जाती कि दादी - पोती की जोड़ी कहीं बैठकर बातें कर रही होंगी । माॅं का अंदाजा सही साबित होता और मैं दादी के साथ ही उन्हें मिलती । दादी से मैंने बहुत कुछ सीखा । किताबी ज्ञान तो मुझे स्कूल में मिल ही रहा था लेकिन एक व्यक्ति को किताबी ज्ञान के अतिरिक्त व्यावहारिक और सांसारिक ज्ञान की भी जरूरत पड़ती है जिसे मैं दादी - दादी , चाचा-चाची , माॅं - पापा और अपने से बड़े भाई - बहनों से सीखने की कोशिश कर रही थी । परिवार के हर सदस्य मेरे छोटे होने के कारण कुछ ना कुछ सीख अवश्य दें ही देते थे ।


दोस्तों ! यादों के झरोखे में कैद दादी की बताई सीख के साथ फिर से आई हूॅं । दादी से यूं ही बातों के क्रम में मैंने पौधो के संबंध में बहुत बातें जानी है जों मैं अभी आप सभी को बताने जा रही हूॅं। दादी द्वारा आंवले और अशोक के पेड़ के संबंध में कही बातें बताती हूॅं तो सबसे पहले बात करते हैं आंवले के पेड़ की । तुम इतना तों जानती ही हो कि हमारे हिंदू धर्म ग्रंथों में आंवले के पौधे की पूजा करने की बातें बताई गई हैं । ऐसी मान्यता है कि आंवले के पौधे की जड़ में भगवान विष्णु का वास होता
है । मेरी दादी भी यही कहती थी । उनका कहना था कि यह पौधा बहुत पवित्र और शुभ होता है इसलिए जिस किसी को भी अपने घर में सुख - समृद्धि चाहिए उसे अपने घर के आस-पास आंवले का पौधा जरूर लगाना चाहिए । उनका कहना था कि ऐसा करने से हमारे घर में भगवान का वास होता हैं और ज्यों - ज्यों  आंवले का पौधा बढ़ता है हमारे घर में सुख - समृद्धि आती रहती है एवं भगवान विष्णु की कृपा भी हमेशा बनी रहती है तभी तो दादी ने जब अपना घर बनवाया घर के दरवाजे के आगे बहुत बड़ा मैदान छोड़ दिया और उस मैदान के एक तरफ आंवले के पेड़ लगवाएं । मुझे आज भी याद है हमारे पास आंवले के सात पेड़ थे । हम बच्चे थे तो अपने दोस्तों को दिखाते थे कि देख ! हमारे सात आंवले के पेड़ हैं । सब दोस्तों को आंवला तोड़ कर मैं देती भी थी और दादी उनके घरों में देकर आने के लिए भी आंवला देती थी । सब की मम्मी आंवले के आचार डालती थी जिसे कई बार मैंने भी उनके घरों पर खाया हुआ था और कहा भी था कि ये आंवले तो मेरे पेड़ के हैं । चाची हॅंसती और कहती कि हाॅं! यह तुम्हारे घर के आंवले ही हैं जिनके आचार हम हर साल डालती हैं । 😊


 दोस्तों ! दादी ने हमारे घर से कुछ दूर खाली मैदान के दूसरी तरफ एक ओर से कुछ दूरी पर अशोक के पेड़ भी लगवाएं थे । वह कहती थी अशोक का पेड़ हमारे घर के शोक को दूर करता है और शायद! यही वजह रही होगी कि जिसने भी इस पेड़ का नाम अशोक रखा होगा उसके दिमाग में एक बार यह बात तों जरूर आई होगी कि 👇


" जो  दूर  करें  हमारे  शोक
  वह    पेड़     है      अशोक "


दोस्तों! आप सबने देखा ही होगा कि अशोक के पेड़ देखने में बहुत सुंदर लगते हैं। जब मैं अपने जीवन के अपने विद्यार्थी काल में थी  तब हम सब विद्याथिर्यों का खास त्योहार " सरस्वती पूजा " होता था तब हम सरस्वती माॅं  के पंडाल को अशोक और केले के पत्तों से ही तों सजाते थे । क्या दिन थे वें ना ? काश ! वें दिन , वें पल , वें लम्हें हमारी जिंदगी में दुबारा आ पाते । हमलोग अपने दोस्तों और परिवार के सदस्यों के साथ मिलकर हर एक त्योहार का  कितना आनंद उठाते थे । हर त्योहार हम बच्चों के लिए खुशियां लेकर आता  था । हम खुशी-खुशी और कूद-कूद कर  घर के और त्योहार संबंधित कार्य करते थे । अब तो एक दिन भी काम कर लो तो थकान आ जाती है लेकिन उस समय तो थकान का नामोनिशान तक चेहरे पर ढूंढने पर भी नहीं मिलता था ।  काश! वें दिन दुबारा आ पाते ?  मेरा ऐसा सोचना मुमकिन ही नहीं बल्कि नामुमकिन हैं ।😔😔   ऐसा होना नामुमकिन है यह जानते हुए भी दिल करता है कि वें गुज़रे हुए दिन वापस आ जाते  । 🤗🤗


दोस्तों! दादी की सीख आप सबको  बताते - बताते मैं देखो ! कहाॅं चली गई थी ? हाॅं तो मैं कह रही थी कि हम बड़े - बुजुर्गों की बातें सुनकर उनसे बहुत सी ऐसी बातें सीख सकते हैं जो हमें किताबों में नही मिलती है । मैं तो अपने बच्चों को अपनी दादी - नानी , दादा - नाना जी के पास बैठने को कहती हूॅं  । वें कुछ देर मेरे डर से बैठते हैं लेकिन आजकल के बच्चे को मोबाइल फोन से फुर्सत ही कहाॅं कि वें उनके पास बैठें ? ऊपर से इस कोरोना ने तो उनके हाथ में मोबाइल फोन देने का बहाना भी पकड़ा दिया था। आनलाइन क्लासेज के कारण सुबह से दोपहर तक उनके हाथ में ही मोबाइल फोन रहता था । उसके ऊपर से वें कहते थे कि दिन भर पढ़ा हूॅं तों शाम में गेम खेलने के लिए मोबाइल दे दीजिए ना । मोबाइल के लिए इमोशनल ब्लैकमेलिंग तक होने लगी थी ।


दोस्तों! अब  तुमसे विदा लेने का वक्त आ चुका है क्योंकि हम गृहणियों के जीवन में काम का तो अभाव है ही नही।  फुर्सत मिलते ही फिर से मिलने आऊंगी तब तक के लिए 👇


🤗🤗🤗 " आप सब खुश रहें , मस्त रहें और सबसे महत्वपूर्ण बात हमेशा हॅंसते - मुस्कुराते रहें " 🤗🤗🤗


" गुॅंजन कमल " 💗💞💓


# यादों के झरोखे से

# २०२२
 


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7 Comments

Rajeev kumar jha

07-Jan-2023 07:35 PM

बेहतरीन

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Nice 👍🏼

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